ले अर्ज़ खड़ा हूँ दर पे मैं, कर लेना तुम स्वीकार इसे
इक माँग है मेरी छोटी सी, मत कहना है इंकार तुझे .
जब- जब दानव इस धरती पर आया, तुमने संहार किया
कभी राम रूप, कभी कृष्ण रूप, कभी नरसिम्हा अवतार लिया .
कितने ही भक्त प्रह्लाद सा तुमने,भवसागर से पार किया .
हे दीनानाथ ,हे जगत पिता ,मेरा बारम्बार नमस्कार तुझे ;
इक माँग है मेरी छोटी सी , मत कहना है इंकार तुझे .
हे दसो दिशाओं के मालिक, एक प्रश्न उठ रहा मन में है ;
हर जीवों का है प्राण-पति, तू बसा हुआ कण- कण में है ;
जब त्रेता में था पाप बढ़ा, असुरत्व चरम पर जा चढ़ा ;
मनुज , देव , संत ,मुनि के जीवन में अंधकार हुआ ,
तीनो लोकों से गूंज उठी , आजा ,ओ मेरे प्राण-पति ;
ले राम रूप नर जीवन में, तू ने रावण संहार किया ;
फिर युग बदला द्वापर आया , तुम ने कृष्णा अवतार लिया ;
और इसी तरह कितनों को तुम ने ,भवसागर से पार किया;
तेरी इन्हीं गथाओं का हो रहा आत्म-मंथन मुझे ,
और इसीलिए ले अर्ज़ खड़ा ,कर लेना तुम स्वीकार इसे ;
इक माँग है मेरी छोटी सी , मत कहना है इंकार तुझे-2
सतयुग हो , त्रेता या द्वापर ,सब ने तेरा गुण-गान किया .
स्वर्ग ही नहीं ,वरन क्षितिज भी;राम नाम रस पान किया .
जब द्वापर बीत कलयुग आया है, चारो ओर अँधेरा है ;
नर रूप लिए पग-पग धरती पर ; रावण का ही डेरा है.
धरती रोती, अम्बर रोता; जलचर और सागर रोता है .
दुष्कर्म ,पाप और स्वार्थ का तांडव ,रोज़ यहाँ पर होता है.
मानव ही मानव का दुश्मन, जिसे देख, चक्षु होती हैं नम,
सरेआम यहाँ बालाओं का ,चीर खींच रहा दुःशासन ;
लगा धर्म का भी ठेकेदारी , फैला सर्वत्र महामारी ;
अब चीख रही शृष्टि सारी, कहाँ जा छुपे हो तुम गिरधारी;
ये बढ़ता पाप बसुंधरा पे, क्या तुझपे भी पड़ता भारी ?
हे जगन्नाथ, मुझे बतलाओ ; क्या राज़ हैं ? कुछ तो समझाओ .
अब दया करो, हे दयानिधि ;उलझी गुत्थी को सुलझाओ.
यदि दंड कोई देना चाहो, सहर्ष हैं स्वीकार मुझे .
हो रहा है क्यों ऐसा जग में इतना तो बता दे आज मुझे
बस माँग यही है छोटी सी, मत कहना है इंकार तुझे-2.
ले अर्ज़ खड़ा हूँ दर पे मैं, कर लेना तुम स्वीकार इसे ;
इक माँग है मेरी छोटी सी, मत कहना है इंकार तुझे -२.
Thank You.
Deepak Kumar Choudhary ,
Editor in chief ,
STAR HIND NEWS ,
Bhagalpur , Bihar , India